बागेश्वर में पेड़ों को बचाने के लिए पेड़ों से लिपटीं महिलाएं, ये है कारण

बागेश्वर : प्रदेश के बागेश्वर जिले के कमेड़ीदेवी-रंगथरा-मजगांव-चैनाला मोटरमार्ग के निर्माण की जद में आ रहे 500 से अधिक पेड़ों को बचाने के लिए जाखनी गांव की महिलाओं ने मुहिम छेड़ दी है। इस बार यहां की महिलाओं ने 500 से ज्यादा पेड़ों को बचाने का संकल्प लेते हुए व्यवस्था के खिलाफ मोर्चा खोला है। उन्होंने पेड़ों को अपने बच्चों की तरह बचाने का संकल्प लिया है।
सोमवार को जाखनी गांव की महिलाओं ने एक महिला, एक पेड़ की तर्ज पर पेड़ों को बच्चों की तरह बचाने का संकल्प लिया है। यह स्थान यहां से करीब 65 किलोमीटर दूर है। गांव की महिलाओं ने मोटर मार्ग निर्माण का विरोध करते हुए शासन और प्रशासन के खिलाफ जमकर नारेबाजी की। इसके बाद महिलाएं सर्वे के तहत काटे जाने वाले पेड़ों से लिपटकर खड़ीं हो गईं। महिलाओं ने कहा कि उन्होंने इन पेड़ों की उन्होंने अपने बच्चों की तरह देखभाल की है। इन्हें किसी भी सूरत में कटने नहीं दिया जाएगा।
गांव की सभी महिलाओं ने पेड़ों से लिपटकर इन्हें काटने का विरोध किया। महिलाओं का कहना है कि चाहे जो हो जाए, वे सड़क के लिए इन पेड़ों को नहीं कटने देंगी। यदि शासन-प्रशासन ने जबरन पेड़ काटने की कोशिश की तो जबर्दस्त प्रदर्शन कर आंदोलन करेंगी। जाखनी के ग्रामीणों का कहना है कि वन पंचायत में बांज, बुरांश, उतीस के हजारों पेड़ हैं। चौड़ी पत्तीदार पेड़ों से गांव के प्राकृतिक जल स्रोत सुरक्षित और संरक्षित हैं। अगर पेड़ काटे गए तो पानी स्रोत नष्ट हो जाएंगे। पानी की किल्लत शुरू हो जाएगी।
बता दें कि कुछ समय पहले पुलिस की मदद से सड़क निर्माण शुरू कराया गया था। मजगांव तक जमीन का कटान हो चुका है। अब जाखनी गांव के वन पंचायत में काम होना है। इन महिलाओं का कहना है कि इसके लिए 500 से ज्यादा पेड़ काटे जाएंगे। अगर ऐसा हुआ तो गांव के साथ विनाश हो जाएगा। प्रशासन इस मार्ग को खारीगड़ा तोक से मजगांव तक बनाए। इसमें किसी को भी आपत्ति नहीं है। महिलाओं ने प्रशासन से वनों पर निर्दयता से मशीन चलवाने की बजाय पेड़ों को बचाते हुए वैकल्पिक मार्ग निकालने की सलाह दी है। 
पेड़ों से चिपककर मोर्चा खोलने वाली महिलाओं में प्रेमा देवी, बसंती देवी, मनुुली देवी, पार्वती देवी, इंद्रा देवी, कमला देवी, बसंती देवी, नीरू मेहता, चंद्रा देवी आदि शामिल हैं।

क्या था चिपको आंदोलन?
चिपको आंदोलन की शुरुआत 1973 में भारत के प्रसिद्ध पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा, चंडीप्रसाद भट्ट और गौरा देवी के नेतृत्व में हुई थी। इस आंदोलन की शुरुआत उत्तराखंड के चमोली जिले से हुई थी। उस समय उत्तर प्रदेश में पड़ने वाली अलकनंदा घाटी के मंडल गांव में लोगों ने चिपको आंदोलन शुरू किया था। 
1973 में वन विभाग के ठेकेदारों ने जंगलों में पेड़ों की कटाई शुरू कर दी थी। वनों को इस तरह कटते देख स्थानीय लोगों खासकर महिलाओं ने इसका विरोध किया। इस तरह चिपको आंदोलन की शुरुआत हुई। महिलाएं पेड़ों से चिपक गईं। उन्होंने ऐलान कर दिया कि पहले तुम्हारी कुल्हाड़ियां और आरियां हम पर चलेंगी। फिर तुम पेड़ों क पहुंच पाओगे।

इंदिरा गांधी द्वारा लिया गया था फैसला
चिपको आंदोलन को 1980 में तब बड़ी जीत मिली जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने प्रदेश के हिमालयी वनों में वृक्षों की कटाई पर 15 वर्ष के लिये रोक लगा दी थी। बाद के वर्षों में ये आंदोलन पूर्व में बिहार, पश्चिम में राजस्थान, उत्तर में हिमाचल, दक्षिण में कर्नाटक और मध्य में विंध्य तक फैला था।

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