राज्य की सृष्टि की फिल्म "एक था गांव" हुई MAMI फिल्म महोत्सव की इंडिया गोल्ड श्रेणी में शामिल

उत्तराखंड : राज्य की सृष्टि लखेड़ा की फिल्म ‘एक था गांव’ ने मुंबई एकेडमी ऑफ मूविंग इमेज (MAMI) फिल्म महोत्सव के इंडिया गोल्ड श्रेणी में अपनी जगह बना ली है। मुंबई फिल्म महोत्सव का आयोजन इसी महीने होना था, लेकिन कोरोना संकट के चलते अब इस फिल्म महोत्सव का आयोजन अगले साल 2021 होगा।
फिल्म ‘एक था गांव’ पलायन से खाली हो चुके एक गांव की कहानी पर आधारित है। गढ़वाली और हिंदी भाषा में बनी सृष्टि की इस फिल्म का मुकाबला विभिन्न भाषाओं की चार फिल्मों के साथ है।
मूल रूप से टिहरी जिले के विकासखंड कीर्तिनगर के सेमला गांव की सृष्टि लखेड़ा का परिवार वर्तमान में ऋषिकेश में रहता है। सृष्टि पिछले 10 सालों से फिल्म लाइन के क्षेत्र में हैं। उत्तराखंड खासकर पहाड़ों में पलायन की पीड़ा को देखते हुए उन्होंने पावती शिवापालन के साथ बतौर सह-निर्माता फिल्म बनाने का निर्णय लिया। इसके लिए उन्होंने अपने गांव सेमला का चयन किया।

19 साल की गोलू और 80 साल की लीला पर आधारित है फिल्म
फिल्म “एक था गांव” के दो मुख्य पात्र हैं। 80 वर्षीय लीला देवी और 19 वर्षीय किशोरी गोलू। लीला गांव में अकेली रहती है। उनकी इकलौती बेटी की शादी हो चुकी है, जो देहरादून में रहती है। लीला देवी की बेटी अपनी माँ को अक्सर साथ में देहरादून चलने के लिए कहती रहती है, लेकिन लीला हर बार मना कर देती है। वह गांव नहीं छोड़ना चाहती है। क्योंकि उसे गांव का जीवन अच्छा लगता है। हालांकि गांव का जीवन बहुत कठिन है।
वहीं, दूसरी पात्र में रहने वाली 19 साल की लड़की गोलू है। जिसे गांव के जीवन में भविष्य नहीं दिखता है। वह भी बाकी लड़कियों की तरह अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती है। इस बीच एक दिन ऐसी परिस्थिति आती है, कि दोनों को गांव छोड़ना पड़ता है।
लीला अपनी बेटी के पास देहरादून चली जाती है। जबकि गोलू उच्च शिक्षा के लिए ऋषिकेश चली जाती है। फिल्म के माध्यम से बताया गया कि अपनी जन्मभूमि को छोड़ने का कोई न कोई कारण होता है, लेकिन गांव छोड़ने के बाद भी लोगों के मन में गांव लौटने की कश्मकश चलती रहती है।

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