उत्तरकाशी में चीन सीमा पर स्थित गर्तांगली ट्रैक पर्यटकों के लिए खुला, पंजीकरण होगा जरुरी

उत्तरकाशी : उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में भारत-चीन सीमा पर जाड़ गंगा घाटी में स्थित गर्तांगली (सीढ़ीनुमा रास्ता) के पुनरुद्धार का कार्य पूरा होने के बाद बुधवार को इसे पर्यटकों के लिए खोल दिया गया। डीएम मयूर दीक्षित ने गंगोत्री नेशनल पार्क के उपनिदेशक व जिला पर्यटन विकास अधिकारी को इस विश्व प्रसिद्ध क्षेत्र को पर्यटकों के लिए खोलने के निर्देश दिए । पहले दिन कुछ स्थानीय पर्यटक ही गर्तांगली के दीदार को पहुंचे।
जिलाधिकारी मयूर दीक्षित ने बताया कि एक बार में अधिकतम दस पर्यटकों को ही गर्तांगली जाने के निर्देश गंगोत्री नेशनल पार्क के उपनिदेशक को दिए गए हैं। गर्तांगली में झुंड बनाकर आवाजाही करना, बैठना, उछलकूद करना व ज्वलनशील पदार्थ ले जाना प्रतिबंधित है। सुरक्षा की दृष्टि से गर्तांगली की रेलिंग से नीचे झांकना भी प्रतिबंधित है। आने वाले पर्यटकों का पंजीकरण करने के निर्देश दिए हैं। भैरवघाटी के पास चेकपोस्ट बनाकर उस क्षेत्र में आने वाले पर्यटकों का पंजीकरण भी होगा। वहीं, गंगोत्री नेशनल पार्क के अधिकारी गर्तांगली की सैर को शुल्क तय करने समेत अन्य पर्यटन सुविधाएं जुटाने में लगे हैं।

पहले होती थी व्यापारिक आवाजाही
बता दें जनपद उत्तरकाशी की भैरव घाटी के समीप गर्तनग गली मैं खड़ी चट्टानों को काटकर लकड़ी से निर्मित  ट्रैक बनाया गया है। प्राचीन समय में सीमांत क्षेत्र में रहने वाले जादूग नेलांग को हरसिल क्षेत्र से पैदल मार्ग के माध्यम से जोड़ा गया था। मार्ग से स्थानीय लोग तिब्बत से व्यापार भी करते थे। सेना भी सीमा के निगरानी के लिए इस मार्ग का उपयोग करते थे। बाद में चलन से बाहर होने पर ट्रैक क्षतिग्रस्त हो गया। हाल में इस ट्रैक का जीर्णोद्धार कर 136 मीटर लंबे व 1.8 मीटर चौड़े लकड़ी से निर्मित ट्रैक तैयार किए गए हैं।
समुद्रतल से 10500 फीट की ऊंचाई पर एक खड़ी चट्टान को काटकर बनाए गए इस सीढ़ीनुमा मार्ग से गुजरना बहुत ही रोमांचकारी अनुभव है। 140 मीटर लंबा यह सीढ़ीनुमा मार्ग 17वीं सदी में पेशावर से आए पठानों ने चट्टान को काटकर बनाया था। 1962 से पहले भारत-तिब्बत के बीच व्यापारिक गतिविधियां संचालित होने के कारण नेलांग घाटी दोनों तरफ के व्यापारियों से गुलजार रहती थी। दोरजी (तिब्बती व्यापारी) ऊन, चमड़े से बने वस्त्र व नमक लेकर सुमला, मंडी व नेलांग से गर्तांगली होते हुए उत्तरकाशी पहुंचते थे।
भारत-चीन युद्ध के बाद गर्तांगली से व्यापारिक आवाजाही बंद हो गई। हालांकि, सेना की आवाजाही होती रही। भैरव घाटी से नेलांग तक सड़क बनने के बाद 1975 से सेना ने भी इस रास्ते का इस्तेमाल बंद कर दिया। देख-रेख के अभाव में इसकी सीढ़ि‍यां और किनारे लगाई गई लकड़ी की सुरक्षा बाड़ जर्जर होती चली गई। गर्तांगली के पुनरुद्धार का कार्य बीते मार्च में शुरू हुआ, लेकिन अप्रैल में बर्फबारी के चलते कार्य की गति धीमी रही। हालांकि, जून में कार्य ने रफ्तार पकड़ी और जुलाई के अंतिम सप्ताह में कार्य पूरा भी हो गया। अब गर्तांगली को पर्यटकों के लिए खोल दिया गया है।

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