दो नंवबर से राज्य में खुलेंगे स्कूल, ज्यादा छात्र आने की स्थिति में चलाई जाएंगी दो शिफ्ट

उत्तराखंड : राज्य में अनलॉक-5 में जल्द ही दो नवंबर से 10वीं और 12वीं के छात्र-छात्राओं के लिए स्कूल खुलने जा रहे हैं। शासन ने इसके लिए एसओपी भी जारी कर दी है। इसमें कहा गया है कि यदि अधिक छात्र स्कूल आए तो कक्षाएं दो शिफ्ट में चलाई जा सकती हैं।
एसओपी के अनुसार, स्कूलों में छात्रों के लिए छह फीट की दूरी पर बैठने की व्यवस्था की जाए। जो छात्र स्कूल नहीं आएंगे उनके लिए ऑनलाइन पढ़ाई की व्यवस्था पहले की तरह जारी रहेगी। दो शिफ्टों में स्कूल चलाने की स्थिति में पहली शिफ्ट में 10वीं और दूसरी शिफ्ट में 12वीं के छात्र-छात्राओं को बुलाया जाएगा।
एक क्लास में ज्यादा-से-ज्यादा 50 प्रतिशत छात्र ही बैठेंगे। जबकि बाकी बच्चों को अगले दिन बुलाया जाएगा। मुख्य सचिव ओमप्रकाश की ओर से जारी निर्देश में यह भी कहा गया है कि स्कूल खुलने से पहले उन्हें पूरी तरह से सैनिटाइज किया जाए और हर शिफ्ट के बाद यह काम किया जाए।
सभी स्कूलों में सैनिटाइज, हैंडवॉश, थर्मल स्कैनिंग व प्राथमिक उपचार की व्यवस्था सुनिश्चित की जाए। यदि किसी छात्र, शिक्षक व कर्मचारी में खांसी जुखाम या बुखार के लक्षण हैं तो उन्हें प्राथमिक उपचार में घर भेज दिया जाए।

अन्य व्यवस्थाएं :
- आधी क्षमता के साथ चलेंगे स्कूल वाहन।
- खेलकूद और मनोरंजन संबंधी गतिविधियां नहीं होंगी।
- प्रार्थना क्लास रूम में ही की जाएगी।
- स्कूल वाहनों को नियमित रूप से कम-से-कम दो बार सैनिटाइज किया जाएगा।

प्राइवेट स्कूलों को दिलाना होगा भरोसा
10वीं और 12वीं कक्षाओं के लिए स्कूलों को खोले जाने की एसओपी जारी होने के बाद स्कूल तैयारी में जुट गए हैं। हालांकि, 75 से 80 फीसदी अभिभावक अभी भी बच्चों को भेजने से इंकार कर रहे हैं। अन्य अभिभावकों का मानना है कि स्कूलों को अब अभिभावकों और बच्चों का विश्वास जीतना होगा ताकि वह कोरोना संक्रमण के खतरे के बावजूद स्कूल आने के लिए तैयार हों।
प्राइवेट स्कूलों को खोले जाने के संबंध में लंबे समय से बहस चल रही है। अब सरकार साफ कर चुकी है कि कम से कम 10वीं और 12वीं के छात्रों के लिए स्कूल खुलेंगे। सरकार ने एसओपी जारी कर प्राइवेट स्कूलों की जिम्मेदारी भी तय कर दी है। ताकि वो बाद में अपना पल्ला ना झाड़ सकें।
बच्चों की सुरक्षा के कई दावे भी किए जा रहे हैं लेकिन अधिकतर अभिभावक अब भी सरकार के इन दावों पर यकीन नहीं कर पा रहे हैं। ना ही उन्हें स्कूलों पर भरोसा है कि वह बच्चों की सुरक्षा को लेकर जरुरी सुरक्षा उपाय करेंगे। यही मुख्य कारण है कि वह बच्चों को स्कूल भेजने के लिए पूरी तरह तैयार नहीं पा रहे हैं।
 

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