राज्य की डुंडा रेंज के जंगल में आग, बारिश न होना बना कारण

उत्तराखंड : राज्य में सर्दी की दस्तक के बाद भी बारिश न होने का असर जंगलों पर अभी से दिखने लगा है। बारिश न होने के कारण जंगलों से नमी गायब हो गई है। इसके नतीजे में फायर सीजन (15 फरवरी से मानसून के आगमन तक का वक्त) शुरू होने से चार महीने पहले ही जंगलों में आग लगना शुरू हो गई है। इसके कारण वन महकमे की परेशानी बढ़ भी गई है। 
फिलहाल, सभी वन प्रभागों को अलर्ट मोड पर रहने के निर्देश दिए गए हैं। इसके साथ ही एक नवंबर से सेटेलाइट आधारित फायर अलर्ट सिस्टम गंभीरता से शुरू किया जा रहा है। इसके साथ ही वन मुख्यालय में राज्य स्तरीय फायर कंट्रोल रूम का संचालन भी प्रारंभ किया गया है।
बारिश के लिहाज से देखा जाये तो राज्य में अक्टूबर में सामान्य तौर पर 33.6 मिमी वर्षा होती है, लेकिन इस साल अभी तक बूंद भी नहीं बरसी। इससे पहले सितंबर में बारिश में 65 फीसद की कमी दर्ज की गई थी। ऐसे में जंगलों में नमी गायब हो गई है। विशेषकर पर्वतीय क्षेत्रों के जंगलों में घास सूख गई है। वैसे यह स्थिति नवंबर महीने के बीच में या दिसंबर में आती थी, लेकिन तब सर्दी अधिक होने से दिक्कत नहीं आती थी। लेकिन इस साल इसी वजह से पर्वतीय क्षेत्रों में जंगल अभी से सुलगने शुरू हो गए हैं।
पिथौरागढ़, बागेश्वर व अल्मोड़ा के बाद इन दिनों पौड़ी जिले के बीरोंखाल क्षेत्र और उत्तरकाशी जिले की डुंडा रेंज में जंगल जल रहे हैं। यह बात भी सही है कि जब सितंबर में ही बारिश कम थी तो इसे देखते हुए अक्टूबर की शुरुआत से ही कदम उठाए जाने चाहिए थे। लेकिन, वन महकमा अब सक्रिय हुआ है।
नोडल अधिकारी (वनाग्नि एवं आपदा प्रबंधन) मान सिंह के अनुसार, अभी तक जो फीड बैक लिया गया, उसमें जंगलों में शुष्कता बढ़ने की बात सामने आई है। उन क्षेत्रों में जंगल सुलगे हैं, जहां वन सीमा से सटे खेतों में अगली फसल की बुआई के मद्देनजर कूड़ा जलाया गया। हालांकि, आग के कारणों के बारे में विस्तृत जानकारी ली जा रही है।
उन्होंने बताया कि मौजूदा परिस्थितियों को देखते हुए सभी वन प्रभागों को अलर्ट मोड पर रहने के लिए एडवाइजरी जारी की गई है। एक नवंबर से फायर अलर्ट सिस्टम शुरू किया जा रहा है, जिससे कहीं भी आग की सूचना मिलने पर इसे बुझाने को तुरंत कदम उठाए जा सकेंगे। इसके अलावा जंगल की आग से निबटने को अन्य कदम भी उठाए जा रहे हैं।

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