राज्य के पहले गूगल सर्टिफाइड एजुकेटर बने शिक्षक भास्कर जोशी, खुद तैयार की स्कूल की वेबसाइट

अल्मोड़ा : कोरोना काल के इस मुश्किल समय में तकनीकी कौशल की कमी के कारण अधिकांश सरकारी स्कूलों में शिक्षक बच्चों को नहीं पढ़ा पा रहे हैं जो सामयिक दृष्टि से जरूरी है। शिक्षा में तकनीक का शत प्रतिशत उपयोग न होने से डिजिटल इंडिया का सपना अब भी अधूरा है। वहीं कुछ शिक्षक इस मामले में मिसाल बन रहे हैं। 
उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के धौलादेवी ब्लॉक के सुदूर राजकीय प्राथमिक विद्यालय बजेला में सहायक अध्यापक भास्कर जोशी ने युवाओं को तकनीक के साथ तालमेल बिठाने की दिशा में एक नई उपलब्धि हासिल की है। जी हां, वह उत्तराखंड के पहले गूगल सर्टिफाइड एजुकेटर बन गए हैं। उन्हें गूगल ने सर्टिफाइड एजुकेटर होने का प्रमाण पत्र दिया है। 
तकनीक की पहुंच न होने की वजह से यहां के बच्चे आधुनिक पढ़ाई से वंचित थे। कोरोना काल में स्कूल बंद हुए तो मुश्किल और बढ़ गई। ऐसे में बच्चों को पढ़ाई से जोड़े रखने लिए भास्कर जोशी ने खुद स्कूल की एक वेबसाइट तैयार की। इस पर उन्होंने 500 से ज्यादा वर्कशीट व खुद के तैयार एनिमेटेड वीडियो अपलोड किए। जिनके माध्यम से देश-विदेश के बच्चे अपनी पढ़ाई सुचारू रूप से जारी रख सकते हैं।
वैश्विक महासंकट ने इंसानी सेहत व अर्थव्यवस्था ही नहीं बल्कि शिक्षा को भी बुरी तरह प्रभावित किया है। मगर तकनीक के प्रयोग से प्राथमिक विद्यालय बजेला के सहायक अध्यापक भास्कर जोशी ने इसका समाधान ढूंढ उत्तराखंड का गौरव बढ़ाया है। उनकी उपलब्धि से अन्य शिक्षक भी इंफॉरमेशन एंड कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी के प्रयोग व गहन प्रशिक्षण के लिए प्रेरित होंगे। वर्तमान में भास्कर जोशी देहरादून से साथी राजेश पांडे के साथ मिलकर बच्चों के लिए ऑनलाइन पत्रिका डुगडुगी के प्रकाशन में जुटे हैं।
भास्कर बताते हैं कि वो पहले वॉट्सएप के जरिए बच्चों को पढ़ा रहे थे, लेकिन इसमें कई तरह की परेशानियां थीं। फिर उन्हें गूगल फॉर एजुकेशन के जरिए पढ़ाई कराने का आइडिया आया। ये निशुल्क प्लेटफॉर्म हर किसी के लिए फायदेमंद है। उन्होंने इसके बारे में और जानकारी इकट्ठा की। 10 डॉलर यानी 850 रुपये का शुल्क जमा कर अंतरराष्ट्रीय परीक्षा दी। परीक्षा पास कर भास्कर गूगल सर्टिफाइड एजुकेटर बन गए। अब वो कक्षा में गूगल के माध्यम से कई तकनीकी विषयों को समझा सकते हैं, छात्रों का ज्ञान बढ़ा सकते हैं। 

पिछले साल बनाया पहला वाट्सएप ग्रुप
बीते वर्ष कोरोनाकाल में बच्चों को पढ़ाने के लिए राज्य का पहला वॉट्सएप ग्रुप भी भास्कर जाेशी ने ही बनाया। उन्होंने इसे नाकाफी मान व्यवस्थित शिक्षण कार्य के लिए नवाचारी शोध किया। पता लगा कि गूगल ने शिक्षा में तकनीक का समावेश गूगल फॉर एजूकेशन के रूप में किया है। तकनीक से लबरेज यह सेवा निश्शुल्क है। शिक्षक भास्कर कहते हैं कि तकनीक से भरा ये प्लेटफॉर्म काफी परेशानी दूर कर सकता है।

शिक्षक तकनीक के साथ बिठाएं तालमेल
प्राथमिक विद्यालय बजेला धौलादेवी के गूगल एजुकेटर भास्कर जोशी ने बताया कि फ्यूचर एजुकेशन के मामले में दूरदर्शी सोच व स्मार्ट एजुकेटर्स का बड़ा अभाव है। यही वजह है कि सरकारी व गैर सरकारी विद्यालयों के बच्चे स्मार्ट एजुकेशन तकनीक का पूरा लाभ नहीं ले पा रहे। जब तक हम शिक्षा में तकनीक का शत प्रतिशत उपयोग नहीं कर लेते डिजिटल इंडिया का सपना अधूरा ही है। शिक्षकों का दायित्व है कि वह तकनीक के साथ सामंजस्य बैठा नौनिहालों को नवीनतम ज्ञान दें। कोरोना से जंग जीतने के बाद विद्यालय खुलेंगे तो वह प्रबंधन समिति व वेबसाइट चलाने का प्रशिक्षण देंगे। ताकि वह मध्याह्न भोजन, बच्चों की उपस्थिति, परीक्षा आदि की पूरी जानकारी ले सकें।

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